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[[file:BiharDistricts.svg|thumb|200px|right|[[Bihar]] ke districts]] '''Tal, Aurangabad''' [[India]] ke state [[Bihar]] ke [[Gaya]] division ke [[Aurangabad, Bihar|Aurangabad]] district ka ek gaon hae.
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[[पार्ट -1हमारा गाँव ताल (टाल )का संक्षिप्त इतिहास 🙏
कुछ इतिहास के पन्नों से,
राजा जीवन कोल एक इंतिहाई क्रूर शासक था । जिसने कई बार पीरू और आस-पास के गाँव को लूटा एवं नरसंहार किया । इसी आसना में सुफ़ी हज़रत शैख़ अली हिन्दी रह. के पूरे परिवार को मौलाबाग (आज के हसपुरा डीह ) में शहीद कर दिया जाता है । ग़मज़दा हो कर सुफ़ी साहब मदीना शरीफ़ जा कर मुहम्मद साहब के दरबार में अर्ज़ी लगाते हैं और फिर वहाँ से बग़दाद पहुँच कर सैयदना दादा को हिन्दुस्तान साथ चलने और राजा के ज़ुल्म से निजात दिलवाने की अपील करते हैं ।
सुफ़ी साहब की दावत क़बूल कर क़ादरी सिलसिले के बानी बड़े पीर साहब शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रह. की 11वीं पीढ़ी एवं अपने तेज के लिए विख्यात सुफ़ी हज़रत सैयद अमीर मुहम्मद क़ादरी उर्फ़ सैयदना दादा रह. अपने पिता का आशीर्वाद एवं कुछ सहाबी के साथ बग़दाद (ईराक़) से हिन्दुस्तान के लिए रवाना होते हैं ।
रास्ते में कई मंज़िलें, पड़ाव व परेशानियों का सामना करते हुए क़रीब 7 माह में सन 1442 ईस्वी को वर्त्तमान हसपुरा के दक्षिण-पश्चिम एक गांव नरहना या नारहना (आज का #टाल) में आकर वहाँ के फिल्ड पर रुके । यह इलाक़ा सोन नदी का एक किनारा भी था । राजा जीवन कोल की हवेली (महल) भी इसी नरहना गाँव में क़ायम थी ।
किताब "बग़दाद से अमझर " में आता है कि राजा कोलः का महल बहुत बड़ा और हमेशा सख़्त पहरेदारों से घिरा रहता था । जिससे किसी अनजान का प्रवेश लगभग नामुमकिन था । इसी क्रम में शांति वार्ता हेतु सैयदना दादा राजा जीवन कोल के महल जाते हैं और इलाक़े में शांति बहाली की बात करते हैं मगर राजा अपनी हठधर्मिता से सभी अपील को ठुकरा देता है । सैयदना दादा उन्हें ज़ुल्म और ज़ालिम हुक्मरानों के हलाकत को समझाते हैं।सैयदना दादा द्वारा बार-बार की शांति अपील से चिढ कर राजा उन्हें अपनी ताक़त का एहसास दिलाता है, और बहुत सारे मुसलमानों को काट कर कुआँ में डाल देता है , जिका शाक्ष्य अभी भी उसके द्वारा बनाए गए कुएँ देते हैं | तब सैयदना दादा फ़िरौन व तूफ़ाने नूह की बात समझाते हैं मगर राजा पर कोई असर नहीं होता ।
( किताब "सैयदुल हिन्द " में आता है कि जब शांति की सारी कोशिशें नाकाम हो गयी तो सैयदना दादा उस ज़ालिम राजा से निजात की दुआ करते हैं और परमात्मा का ऐसा करिश्मा हुआ की तूफ़ाने नूह की तरह एक ऐसा तूफ़ानी सैलाब आया की राजा जीवन कोल अपने पुरे कुनबे व महल के साथ वहीं ज़मींदोज़ हो गया ।)
 
ग्रामीणों के मतानुसार उसका किला का पतन आकाशीय पिंड (उल्का पिंड ) के गिरने के कारण हुआ था |
एक अँगरेज़ यात्री फ़्रांसिस बुकानन सन 1811-12 के आस-पास बिहार भ्रमण के दौरान उसके संकलन " "जर्नल ऑफ़ फ़्रांसिस बुकानन" में आता है कि मगध के आस-पास कोल वंश के कई राजा थे जो मूलतः बौद्ध थे । मनोरा गाँव (दाऊदनगर के पास) के एक मंदिर में जब वो जाता है तो देखता है कुछ लोग बैठे हैं जिन्हें "पाठक" कहा जाता है और वे अपने को पुजारी कहते हैं । हालांकि वो पाठक अपने को उस मंदिर की संस्कृति से अलग बताते हैं क्योंकि वो एक बौद्ध मंदिर था ।ख़ैर
इसी क्रम में वो 11 फरवरी 1812 ई. के दिन यहाँ [ "ताल" (#टाल) ] भी आता है जहाँ उसे एक दलदल भूमि मिलती है जो राजा जीवन कोल के महल के रूप में दर्शाता है । यहाँ की मिट्टियों में बर्तन एवं ईटों के अवशेष भी पाये गए ।
यहाँ के गवरैया बाबा एवं अमझर के सैयदना दादा के आग्रह पर सोन नदी अपना धारा को मोड़कर धीरे-धीरे वहां से 3 कोस दूर पश्चिम की और से बहने लगी जिसकी कहानी की चर्चा अगली किसी कड़ी में होगी
। इस गाँव का #टाल नाम कैसे पड़ा इसकी 2 रिवायत मिलती है ।
कुछ लोगों के मत ( विचार ) यह है कि जहाँ राजा कोल का महल था उसके पतन के बाद वहाँ एक ताल ( तलाब )का निर्माण हुआ उसी ताल (तालाब) के किनारे लौरिक-भौरीक दो पहलवानों के बसने की वजह कर उन्होंने इस गाँव का नाम "ताल" रखा जो बाद में अपभ्रंश हो कर टाल बन गया । ये तालाब आज "लुरकी पोखरा" के नाम से जाना जाता है (तस्वीर में) ।
जबकि दूसरी रिवायत में आता है कि नदी के परिवर्तित धार से उपजे बालू के बड़े-बड़े #टाल-टीलों की वजह कर इस जगह का नाम #टाल पड़ गया।
क्रमशः
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अधिक जानकारी प्राप्त होने पर पोस्ट को अपडेट किया जा सकता है |
धन्यवाद 🙏🙏
#Piroo #Haspura #Aurangabad #Bihar
#Piru #PritiKoot #Taal #Narhana #SyednaDada]]
 
[पार्ट 2
हमारा गाँव टाल का
 
सैयदना दादा के द्वारा #टाल का प्राचीन नाम " नरहना " का नामकरण एवं अमझर शरीफ़ में बसना.....
 
जैसा की पहले बताया गया सन् 1442 में #सैयदना_दादा बग़दाद(ईराक़) से नरहना (आज के टाल फ़िल्ड) के पास आते हैं । यहीं आप ज़ालिम राजा जीवन कोल से मुलाक़ात कर शांति का संदेश देते हैं जिसे वो नकार देता है। एक भयंकर प्राकृतिक आपदा आती है और राजा अपने पूरे कुनबे के साथ वही ज़मींदोज़ हो जाता है ।जिसकी कई निशानियां आज भी मौजूद हैं ।
निशानियों के रूप में राजा जीवन कोल का महल जो दलदल बन गया था, आज एक तालाब का रूप ले चुका है (तस्वीर में) और इसी तालाब के आस-पास एक पत्थर मिलता है ,जिसे यहाँ के लोग "मुसिन पत्थर" (तस्वीर में ) के नाम से जानते हैं । इस पत्थर के बारे में लोग बताते हैं कि जब इसे हाई डेंसिटी पर पिघलाया जाता है तो इससे एक उजला द्रव्य निकलता है जो कुष्ठ रोगियों के लिए रामबाण औषधि है। इस पत्थर का उपयोग ढ़ोलक में भी होता है । इस पत्थर से लौरिक-भौरिक पहलवान भाई अपने औज़ार भी पजाया करते थे।
ये पत्थर सिर्फ़ इसी #टाल इलाक़े में ही मिलता है, जो बताता है के ये कोई प्राकृतिक आपदा जैसे तेज़ सैलाब या धरती में हुई हलचल से ये आया होगा । कुछ लोग इसे उल्का पिंड का टुकड़ा भी मानते हैं । ख़ैर जो भी हो,मगर बड़े प्राकृतिक आपदा के फलस्वरूप आया ये "मुसिन पत्थर " बड़ा कामगर है ।
सैयदना दादा को बग़दाद से चलते वक़्त अपने पिता से कई प्रकार के तोहफ़े भी मिले थे, जिनकी प्रदर्शनी आज तक #उर्स के मौक़े पर होती रहती है। उन्ही तोहफ़ों में एक छड़ी अजनास (अंजास)भी मिली थी (तस्वीर में) और हुक्म हुआ था कि ये छड़ी जहाँ हरी होगी, वही मक़ाम आपका आख़िरी क़यामगाह होगा ।
सैयदना दादा ने वो छड़ी #टाल में भी लगायी मगर हरी न हो सकी । राजा जीवन कोल की मृत्यु के तत्पश्चात उन्होंने वहां न-रहने (नरहना) का फ़ैसला लिया और अपने साथियों के साथ आगे निकल गए । सोन नदी से लगे अभी कुछ दूर निकले ही थे कि एक "अमजा" नामक घने जंगल में पहुंचे । ये जंगल आपको एकांत में इबादत के लिए बहुत पसंद आया और यहीं अपनी छड़ी लगा आराम फ़रमा गए । इस मक़ाम पर ये छड़ी हरी-भरी हो गयी तो आपने अपना परमानेंट क़याम यहीं डाल दिया । ये "अमजा जंगल" आज #अमझर_शरीफ़ के नाम से जाना जाता है।
इसी क्रम में डोमरा मौज़ा का क्रूर राजा करमू कोल जो जीवन कोल का भाई था और जनता इससे काफ़ी त्रस्त रहती थी । राजा करमू कोल को जब सैयदना दादा के प्रचंड तेज एवं अपने भाई के मौत की ख़बर सुनता है तो शदीद ग़ुस्से में आकर सैयदना दादा के सर्वनाश का प्रण लेता है।
एक बार राजा करमू कोल सोन के रास्ते कहीं जा रहा था तो उसे आज़ान की आवाज़ सुनाई पड़ी तो चौंक गया के इस घने जंगल में कौन है ?मालूम करने पर उसके लोगों ने बताया कि ये वही लोग हैं जिन्होंने आपके भाई और उसके पूरे महल को ज़मींदोज़ कर दिया था । ये जानते ही ग़ुस्से के साथ अपने कुछ सैनिकों को उन्हें मारने भेजता है मगर अचानक ठंडका (बिजली) गिरने से उनसब की मौत हो जाती है । ये देख राजा करमू कोल को सैयदना दादा के जादूगर होने का भ्रम होता है ।
करमू कोल अपने पुत्र छत्र कोल को बुलाता है जो एक माहिर और उस ज़माने का सबसे बड़ा जादुगर था । करमू कोल को यक़ीन था के उसका बेटा अपने जादू से इनसब का काम तमाम कर देगा ।
सैयदना दादा ज़ोहर की नामज़ पढ़ ही रहे थे कि छत्र कोल अपने जादू से पत्थरों की बारिश करवाता है जिसमें सैयदना दादा भी ज़ख़्मी हो जाते हैं। नामज़ ख़तम होते ही सैयदना दादा जैसे ही छत्र कोल की तरफ़ मुख़ातिब होते हैं, पत्थर उलटे छत्र कोल के सैनिकों पर ही गिरने लगता है । ये देख कर छत्र कोल अकबका जाता है और जादू की दूसरी करामत दिखाने लगता है । इधर छत्र कोल की सरकशी देख सैयदना दादा के एक ख़लीफ़ा शैख़ मुहम्मद मजज़ूब रह. उसे मारकर सोन नदी के बालू में वहीं दफ़ना देते हैं ।
करमू कोल पर अब हैबत तारी हो जाती है और अपने बेटे की मौत पर सैयदना दादा से शिकायती अंदाज़ में सवाल करता है । सैयदना दादा उसे शांति का संदेश देते हैं मगर वो सरकशी पर उतर जाता है और तलवार ले कर उन्हें मारने के लिए उठता ही है कि उनके तेज के प्रभाव से उसके हाथ ख़ुद उसके गर्दन पर चले जाते हैं और इस तरह कोल भाईयों के आतंक से पूरा एरिया चैन की साँस लेता है ।
कोल भाईयों के मरने और उसके ज़ुल्म व अत्याचार से मुक्ति की ख़बर जब आस-पास के गाँव में पड़ती है तो सभी बड़े ख़ुश व ख़ुर्रम के साथ सैयदना दादा का अभिनन्दन करते हैं ।
इस प्रकार पीरू व आस-पास के गाँव का नया मरकज़ अमझर शरीफ़ बन जाता है । सोन नदी किनारे होने पर बाढ़ का ख़तरा बना रहता था । लोगों ने इससे बचाव की अपील की तो आप सैयदना दादा एवं #टाल के गवरैया बाबा से यह प्रर्थना करते हैं की सोन नदी की विनाशकारी बाढ़ से हमलोगों के रक्षा करें |ग्रामीणों के आग्रह पर # टाल के गवरैया बाबा एवं अमझर के सैयदना दादा के आग्रह पर सोन नदी अपना रुख मोड़कर यहाँ #( टाल ) से 4 कोस दूर दाऊदनगर से उत्तर-पश्चिम की और बहने लगी ।
सोन नदी के बहाव परिवर्तन का रिकॉर्ड सरकारी दस्तावेज़ों में भी मिलता है। सन 1906 के बिहार डिस्ट्रिक्ट गैजेट के पेज 8 पर LSSO मौले ने बताया है के "सोन नदी का पुराना बहने का रास्ता दाउदनगर से उत्तर पूरब रुख़ हो कर सोनभद्र तक जाती थी और वहां पुनपुन नदी से मिल कर आगे बढ़ते हुए जहानाबाद से 4 मील पश्चिम में मोरहर नदी से मिल जाती थी ।उसके बाद उत्तर रुख़ होते हुए आख़िर में फ़तूहा के पास गंगा में मिलती थी ,लेकिन बाद में किसी प्राकृतिक आपदा या कारणों से सोन नदी उत्तर पश्चिम की तरफ़ हट कर अपने लिए एक नया और साफ़ रास्ता निकाल लिया .."
ख़ैर
इसी क्रम में सोन का बहाव इधर से ख़तम होने के बाद सन 1500 के आस-पास च्यवन ऋषि के प्राचीन मठ में एक देवता रूपी संत बाबा का आगमन होता है जो वहां अग्निकुंड की स्थापना करते हैं जो आज भी प्रज्वलित है । इसी कुंड के नाम पर इस स्थान का नाम देवकुण्ड पड़ा । ये संत बाबा, #टाल के गवरैया बाबा और सैयदना दादा के दोस्ती के क़िस्से बहुत मशहूर हैं । जो आगे चर्चा करेंगे ।
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क्रमशः
 
#Piroo #Haspura #Aurangabad #Bihar
#Piru #PritiKoot #Taal #Narhana #AmjherSharif #SyednaDada]]]
{{ पुरुषोत्तम कुमार टाल }}